सावन मास: आज से हिंदी पंचांग का पांचवा महीना यानी सावन शुरू हो गया है. यह महीना भगवान शिव को अर्पित है. सावन मास में भगवान शिव की आराधना की जाती है और इसे उत्सव की तरह मनाया जाता है. अगर हम सावन महीने के आयुर्वेदिक महत्व की बात करें तो सावन मास बदलाव का महीना माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि ज्येष्ठ और आषाढ़ की गर्मी के बाद सावन के महीने में बरसात की शुरुआत होती है. इस वजह से आयुर्वेद में सावन के महीने को योग-ध्यान का महीना कहा जाता है. बदलते मौसम के इन दिनों हमें अपने खान-पान से लेकर अपने लाइफ स्टाइल के तरीकों में बदलाव करना चाहिए. हालांकि हम यहां आपको सावन के महीने में पूजा-अर्चना के बारे में बताएंगे.
शिवजी को प्रिय है सावन मास:
माना जाता है कि सावन मास में अन्य देवी-देवताओं के मुकाबले शिव जी की पूजा सबसे अधिक की जाती है और यह पूरा महीना शिवजी को ही समर्पित होता है. मान्यताओं के अनुसार सावन महीने में ही देवी पार्वती ने शिवजी को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या शुरू की थी. देवी पार्वती के तप से भगवान शिव प्रकट हुए थे और देवी की इच्छा पूरी करने का वरदान दिया था. ऐसा माना जाता है कि शिवजी को सावन मास प्रिय होने के पीछे 2 वजहें हैं. सबसे पहला यह है कि इसी महीने देवी पार्वती ने शिवजी को पति के रूप में पाने के लिए तप शुरू किया था. दूसरा यह की देवी सती के जाने के बाद शिव जी को अपनी शक्ति यानी देवी पार्वती को पत्नी के रूप में वापस मिली थीं.
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इस प्रकार करें शिवजी की पूजा अर्चना:
- शिवजी की किसी भी तरह की पूजा शुरू करने से पहले गणेश जी का ध्यान जरूर करें.
- शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय ध्यान रखेंगे आप तांबे के लोटे से ही जल चढ़ाएं और दूध चढ़ाने के लिए चांदी या पीतल के लोटे का इस्तेमाल करें
- शिवजी की पूजा करने के लिए पंचामृत चढ़ाएं. आपको बता दें कि पंचामृत दूध, दही, घी, मिश्री, शहद मिलाकर बनाया जाता है.
- इन सब को करने के बाद शिवलिंग पर एक बार फिर से जल चढ़ाएं.
- इसके बाद शिवलिंग पर चंदन से त्रिपुंड बनाएं या तिलक लगाएं.
- बेलपत्र, आंकड़े के फूल, धतूरा, जनेऊ आदि इन सभी पूजा सामग्री को चढ़ाएं.
- इसके बाद मिठाई और फलों का भोग लगाएं और धूप-दीप जलाकर आरती करें.
- पूजा के दौरान ओम नमः शिवाय का जाप अवश्य करते रहे और जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमा जरूर मांगे.
ये चीजें ना चढ़ाएं शिवलिंग पर:
शिवलिंग पर कभी भी तुलसी, हल्दी, शंख से जल, केतली के फूल आदि ना चढ़ाएं.